इतना भी तुम नीचे न गिरो,
उठना ही दूभर हो जाये।
तुमने कोशिश तो की होगी,
पर सब कोशिश हो गई ब्यर्थ,
तुम मानो या फिर ना मानो,
तुम सब कुछ करने में समर्थ,
तुम ज्वाला बन कुछ यूँ चमको,
मन का अँधियारा खो जाये,
इतना भी तुम नीचे न गिरो,
उठना ही दूभर हो जाये..।।
जीवन में जो अभिशाप मिले,
उनको तुम गले लगा लेना,
तुम गला छुड़ाना चाहोगे,
मुस्किल होगा फिर बच पाना,
राणा प्रताप सा वीर बनो,
मस्तक ये ऊँचा हो जाये,
इतना भी तुम नीचे न गिरो,
उठना ही दूभर हो जाये..।
ये समय जो बीता एक बार,
फिर क्या वापस ये आना है,
तुम चाहो या फिर ना चाहो,
सब मिट्टी में मिल जाना है,
करतब कुछ ऐसा दिखला दो,
आदर्श खड़ा कुछ हो जाये,
इतना भी तुम नीचे न गिरो,
उठना ही दूभर हो जाये..।
तुम जान गए ये सत्य सखे,
जीवन की राह अधूरी है,
पर तुममे जो छमता विशिष्ट,
दिखलाना बहुत जरुरी है,
फिर आँख मुंदने से पहले,
जो कुछ होना है हो जाये,
इतना भी तुम निचे न गिरो,
उठाना ही दूभर हो जाये…।
Composed By
Kaushal Shukla