जब मैंने साथी को पाया।
दिल में मेरे उल्लास उठी,
नस नस में उग्र प्रवाह उठी,
मन मंदिर में जिसने आकर
कर दी थी शीतल छाया,
जब मैंने साथी को पाया।
जब सबने मुझको छोड़ दिया,
जब सबने नाता तोड़ दिया,
वे थे विपत्ति के दिन मेरे
जब भाग्य मुझे उस तक लाया,
जब मैंने साथी को पाया
कर के प्रकाश मेरे भीतर,
था जगा दिया जिसने अंतर,
मेरी अँधेरी राहों पर
था जिसने दिया जलाया,
जब मैंने साथी को पाया।
पर भाग्य छली निकला मेरा,
मुझसे उसने भी मुख फेरा,
वह चला गया उस लोक
जहाँ से पुनः न कोई आया,
जब मैंने साथी को पाया।
मेरा अंतर करता क्रंदन,
मेरे बस में है सिर्फ रुदन,
दुनिया के सब नियमों के ऊपर
है इश्वर की माया।
जब मैंने साथी को पाया।
Composed By
Kaushal Shukla