‘नादान बने फिरते है लोग – There Is No Face Behind Mask’

नादान बने फिरते है लोग।

चलना-फिरना, पीना-खाना,
सोकर जगना फिर सो जाना,
यह तो लक्षन चौपायों के,
इंसान बने फिरते है लोग,
नादान बने फिरते है लोग।

धोखा देना उसने जाना,
जीवन का मूल्य न पहचाना,
ऊँची कीमत पर बिकने का,
सामान बने फिरते हैं लोग,
नादान बने फिरते हैं लोग।

जब दुःख में हो सकुचाते हैं,
जिस तिस को गले लगाते हैं,
फिर संकट के टल जाने पर,
भगवान बने फिरते हैं लोग,
नादान बने फिरते है लोग।

सबको उपदेश दिया करते,
सबका आभार लिया करते,
अपने जघन्य कुकृत्यों से,
अनजान बने फिरते हैं लोग,
नादान बने फिरते हैं लोग।

मुस्किल से उसका घर चलता,
जैसे तैसे चूल्हा जलता,
मुस्किल में उसे फ़साने को,
मेहमान बने फिरते हैं लोग,
नादान बने फिरते हैं लोग।

महँगी पोशाक पहनते है,
सर को ऊँचा रख चलते हैं,
पर भस्मासुर हैं शंकर का,
वरदान बने फिरते हैं लोग,
नादान बने फिरते हैं लोग।

इतना सब है पर आशा है,
पर बहुत बडी जिज्ञासा है,
सबकी अपनी परिभाषा है,
सबकी अपनी अभिलाषा है,
सबको जाना इक दिन फिर क्यों
हैवान बने फिरते हैं लोग।

नादान बने फिरते हैं लोग।

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