
गूंजता है मौन हाहाकार, ना अवलंब कोई।
सब सदा अपनी सुनाते, पर मेरा कुछ सुन न पाते
बोलने की बात कहकर और मेरा दिल जलाते
कंठ अब अवरुद्ध कुछ भी बोलने की आश सोई
गूंजता है मौन हाहाकार, ना अवलंब कोई।
जब कभी दुःख में हुआ संवेदना के भाव जागे
पर नहीं मैंने सुनाई उर व्यथा लोगों के आगे
दर्द का एहसास है फिर भी न मेरी आँख रोई
गूंजता है मौन हाहाकार, ना अवलंब कोई।
आज पथ अनजान सा है पर कदम चलते निरंतर
मूक ताना दे रहे से लग रहे मीलों के पत्थर
जल रही मेरे हृदय में एक चिंगारी संजोई
गूंजता है मौन हाहाकार, ना अवलंब कोई।
आज दिल होकर विकल अब एक अंचल ढूंढता है
मन-मयूर स्वछन्द पथ, मनमीत, पागल ढूंढता है
टूटती सी जा रही मन की सभी लड़ियां पिरोई
गूंजता है मौन हाहाकार, ना अवलंब कोई।
फिर सँवर जाए हमारी जिन्दगी गर तुम मिलो
फूल सा मैं भी खिलूँ फिर फूल सा तुम भी खिलो
फिर हृदय में कोंपलें हों, ना रहे प्रतिबन्ध कोई
गूंजता है मौन हाहाकार, ना अवलंब कोई।
Waah… Bahut khoob 👌👌👌
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दिल को छू लेने वाले अनमोल बोल
वाह क्या कविता है
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प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद
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