तूफ़ान की जानिब – The Journey against Storm

 

The journey against storm
The journey against storm

चला तूफ़ान की जानिब, मैं खुद को आजमाने को,
संजोकर हौसला दिल में, मैं थोडा डगमगाने को।

न बस में जिंदगी मेरी, न मेरा मौत पर पहरा,
चला इंशानियत के गीत फिर से गुनगुनाने को।

दिया है, तेल है, बाती है फिर भी लौ ये क्यूँ बुझती,
नहीं बाकी बचा क्या हौसला, खुद को जलाने को?

वो लड़का रोज ही, बाजार में रोटी चुराता है,
दिया क्या इस ज़माने ने उसे मिल बाँट खाने को।

बड़े लोगों की ऊँचाई जो दिखती है, नहीं होती,
दिखावे में चले आए हैं जीते, सच छुपाने को।

हमीं हैं अन्न के दाता मगर फिर भी हमीं भूखे,
किसानों ने कहा मायूस हो, अपने फ़साने को।

यहाँ इक शख्स दिखता है कि आवारा हो वह जैसे,
नदी के बीच में लेकर खड़ा नैया डुबाने को।

कहा मैंने, ‘ओ साथी! मुझको भी उस पार लेकर चल
कहा उसने, ‘नहीं है हौसला अब लौट आने को।’

‘मुझे सब दे दिया भगवान ने, था जो उसे देना,
मुझी में हौसला कम था कि हर वह चीज पाने को।’

न आया जो मेरे जीते जी, मेरी मौत पर आया,
खड़ा है मेरे दरवाजे पे दो आँसू बहाने को।

अजब यह जिंदगी का खेल है लेकिन पुराना है,
खड़ा है ‘वक्त का रेफरी’ यहाँ निर्णय सुनाने को।

कहाँ वह आग है, शायर है, फिर वो हौसला मुझमें,
चला हूँ ढूंढने लेकर कलम अपने तराने को।

Advertisement

One thought on “तूफ़ान की जानिब – The Journey against Storm

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s