मैं हूँ माटी का दिया, मेरा भी कुछ अरमान है।
मंदिरों में देव की, मैं आरती करता रहा,
फिर धर्म के आयोजनों में रौशनी भरता रहा,
गांव की हर गली, हर त्यौहार का श्रृंगार था,
कर्तव्य था जलना, मुझे बस रौशनी से प्यार था।
चाह थी खुद को जलाकर मैं किसी के काम आता,
जगमगा कर रौशनी करता हुआ मैं मुस्कुराता,
घन तिमिर को भेदना, जलना मेरा वरदान है,
मैं हूँ माटी का दिया, मेरा भी कुछ अरमान है।
नृत्य करती लौ मेरी, जब भी हवा का बल मिला,
ना कभी परवाह की इन आंधियो की, जब जला,
सत्य है यह जूझना ही जिंदगी का सार है,
पर नहीं अवसर मिला, अस्तित्व फिर बेकार है।
जब कभी भी थी जरुरत आ पड़ी, मुझको जलाया,
घर हुआ बिजली से रौशन, फूँक कर मुझको बुझाया,
मतलबी संसार का यह तुगलकी फरमान है,
मैं हूँ माटी का दिया, मेरा भी कुछ अरमान है।
खुश हुआ कुम्हार मुझको बेचकर बाजार में,
पर मुझे डर है की शायद मैं बना बेकार में,
कौन पूछेगा मुझे इस चमचमाते शहर में,
हे विधाता! कर सकूँगा क्या तेरा सत्कार मैं?
काश की मैं भी मना लूँ, कल दीवाली आ रही,
ध्वनि पटाखों की मुझे बेचैन करती जा रही,
शहर के लोगों सुनो, मेरा भी कुछ सम्मान है,
मैं हूँ माटी का दिया, मेरा भी कुछ अरमान है।
Beautifully written
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Bahut hi sundar
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धन्यवाद
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Best line – सत्य है यह जूझना ही जिंदगी का सार है,
पर नहीं अवसर मिला, अस्तित्व फिर बेकार है
मानवीकरण का एक मार्मिक उदाहरण
अति सुंदर
Thanks for keep us motivating
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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अति सुंदर!
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प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद….
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प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
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#Awesome
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बेहद खूबसूरत
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