इन ऊँची इमारतों में घर नहीं, मकान होता है,
ये शहर है, यहाँ हर शख्स परेशान होता है।
दुकानें सजीं है हर तरफ, पर क्या खरीदूँ मैं,
यहाँ हर शख्स ख़ुशी तलाशता, फिर नाकाम होता है
जिधर तक नज़र जाती है, बेसुमार आदमी,
पर बात वही करता है, जिसे कुछ काम होता है।
झूठ बोलना और मक्कारी यहाँ, आम बात है,
फ़रेब ऊंचाइयों पर है, सच बदनाम होता है।
यहाँ इंसानियत की बात भी करना फिजूल है,
हर तारीफ के पीछे चापलूस या गुलाम होता है।
ले चल मुझे इस शहर से कहीँ दूर, जहाँ पर,
इंसानियत का अलग ही मुकाम होता है।
वह गाँव की हरियाली, कोयल की मधुर धुन,
वहाँ जीने के लिए कुदरती इंतज़ाम होता है।