
इतने सारे गीत लिखे पर
तुमको नहीं सुना पाया।
व्यथित हृदय से शब्द निकलते,
गीतों-ग़ज़लो में हैं ढलते,
कुछ प्रकाश फैला देते हैं,
दीप हमारे मन में जलते,
किन्तु तुम्हारी राहों को
मैं रौशन नहीं बना पाया,
इतने सारे गीत लिखे पर
तुमको नहीं सुना पाया।
कोई पढता, कोई गाता,
कोई जीवन में अपनाता,
मेरा लेखन सबको भाता,
पर फिर भी मैं अश्रु बहाता,
आह! हृदय की पीड़ा अतिशय,
तुमको ना बतला पाया,
इतने सारे गीत लिखे पर
तुमको नहीं सुना पाया।
प्रेरणामयी माँ की ममता,
निश्छल, निर्मल, गौरवशाली,
तुमने ही मार्ग प्रसस्त किया,
अब कहते सब प्रतिभाशाली,
पर जैसा तुमने चाहा वैसा
खुद को नहीं बना पाया,
इतने सारे गीत लिखे पर
तुमको नहीं सुना पाया।