
राष्ट्र के कवि समाज के नाम एक संदेश
जीवन से आँख मिचौली में
मैंने क्या-क्या कुछ खोया है,
इसका ब्यौरा तो मुश्किल है,
मैंने कुछ स्वप्न संजोया है।
कोशिश करना है धर्म मेरा,
पाना-खोना तो नियति योग,
बस एक बात पर कायम हूँ,
मैं करता हूँ प्रतिदिन प्रयोग।
कवियों की जिम्मेदारी है,
जनता के लिए प्रकाश करें,
जो लुप्त हुआ सा जाता है,
वह ‘निज-गौरव’, विश्वास भरें।
लोगों में जो आलस्य भरा,
वह दूर हमें करना होगा,
हमको साथी यह लीक छोड़,
कुछ अलग राह धरना होगा।
चल खाक उठाकर धरती से,
इक दूजे का हम तिलक करें,
मुस्किल कहतें हैं लोग जिसे,
भारत माँ का वह त्रास हरें।
यदि हम भी चुप हो बैठ गए,
फिर कौन बताने आएगा,
फिर कौन बनेगा ‘जामवंत’
सोया यह राष्ट्र जगाएगा।
जो सोच स्वार्थ से ऊपर हो,
वह भ्रष्टाचार मिटाएगा,
जो अब तक है ‘भारत महान’
फिर ‘विश्व-गुरु’ कहलाएगा।
लो सपथ, अभी चल संग मेरे,
हमको यह कर्ज़ चुकाना है,
यदि भारत माँ के हम सपूत,
तो अपना फर्ज़ निभाना है।
इस ऊँच-नीच की खाई को,
करके कोशिश, भरना होगा,
जिस मिट्टी में जीते आए,
उसकी खातिर मरना होगा।
शब्दों-भावों के धनी मनुज,
अभिनन्दन तेरा करता हूँ,
हे कवि समाज! अपने विचार
मैं तुम्हें समर्पित करता हूँ।
बहुत खूब … नमन आप की लेखनी को।
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प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
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वाह्ह्ह…बहुत सुंदर रचना…अपनी जिम्मेदारी तो सुनिश्चित करना ही चाहिए ।
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प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
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Its amazing
Fantastic lines
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