
तुम्हारा लीद में लिथड़ा अगर दामन नहीं होता,
हमारे मुल्क में इतना छिछोरापन नहीं होता।
सियासत की नज़र होती अगर जो, मुद्दतों पहले,
यहाँ कुछ भ्रष्ट तो होते मगर ‘प्रचलन’ नहीं होता।
यही बदलाव अपनी सोच में पहले किया होता,
तुम्हारे खून में मिश्रित, कमीनापन नहीं होता।
करो बर्बाद मत वर्ना समय बर्बाद कर देगा,
चलन-ए-वक्त में कोई लचीलापन नहीं होता।
तेरी आवाज़ मेरे कान में चुभती नहीं ‘कौशल’
अगर मासूमियत होती, ये तीखापन नहीं होता।
बयाँ करता मैं कैसे, दिल के दुखड़े, चंद लफ़्ज़ों में,
अगर कविता न होती, शायरी का फन नहीं होता।
वाह, बढ़िया है।
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Dhanyvad
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प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
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