
भव्य तेरा रूप, भावुक-भावना, अवधारणा तुम,
तुम ही माँ ज्योतिर्मयी, परिकल्पना की प्रेरणा तुम।
व्याकरण, विज्ञान की जननी, तेरा विद्यार्थी,
विमल-बुद्धि, विवेक भर दो, मैं हुआ शरणार्थी,
ज्ञान का भंडार हो जग में, हे विद्यादायिनी,
शांति की सरिता बहा दो, मातु वीणावादिनी।
इस धरा पर जो तेरे बालक दुःखी या दीन हों,
कर कृपा करुणामयी, कोई कहीँ ना हीन हो,
हर तरफ बस प्रेम का माहौल, चहुँदिश भक्ति हो,
कर्तव्य का हो बोध, सबमें चेतना की शक्ति हो।
माँ शारदे! वर दे, हमारा धर्म में विश्वास हो,
हर घड़ी, हर छड़ हमें निज-कर्म का आभास हो।