जिसे मै भीख कहता हूँ, उसे ईनाम कहते हो-मुक्तक संग्रह

पाँच मुक्तक

1-
जिसे मै भीख कहता हूँ, उसे ईनाम कहते हो,
जो सबको हौसला बाँटे, कवि नाकाम कहते हो,
अजब हालात है तेरे विरोधों का ये आलम है,
जिसे इमली मैं कहता हूँ, उसे तुम आम कहते हो।

2-
चरागों ने धुआँ छोड़ा बहुत पर रौशनी कम दी,
घटा छायी जो चंदा पर तो उसने चाँदनी कम दी,
न देखो तुम मेरी मजबूरियों की वजह भी कुछ है,
जहाँ की फिक्र तो दे दी, खुदा ने आमदनी कम दी।

3-
कहीँ शायद वतन के काम आ जाते तो अच्छा था,
किसी की मुस्कराहट पे जो मुस्काते तो अच्छा था,
सियासत के लिए इंसानियत को भूल बैठे हो,
चुनावों में किसी का वोट ना पाते तो अच्छा था।

4-
अगर इंसानियत का बोझ मेरे सर नहीं होता,
महल होता ये टूटी झोंपड़ी का घर नहीं होता,
बहुत उचाईयों पर आसमां में उड़ रहा होता,
परिंदे का अगर टूटा हुआ जो पर नहीं होता।

5-
मैं रहता हूँ यहाँ परदेश में, अब घर बुलाता है,
मेरी माँ की सुहानी गोद का मंज़र बुलाता है,
जहाँ पर खेलता आया कबड्डी मैं लड़कन में,
वही बरगद बुलाता, गाँव का बंजर बुलाता है।

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