आओ हमसब मिलजुल करके,
बोयें कुछ रिश्तों के बीज।
बना क्यारियाँ बारी-बारी,
ये प्यारी अपनी फुलवारी,
देखें-भालें खूब जतन से,
अपने अरमानों से सींच।
आओ हमसब मिलजुल करके,
बोयें कुछ रिश्तों के बीज।
शक की घाँस न उगने पाए,
देखो कीट न लगने पाए,
सहज स्नेह का घोल बनाकर
छिड़कें, पशु ना खाने पाएँ।
नयी कोंपलें रिश्तों को
कुछ और मधुर कर जाएँगी,
कलियाँ मुस्काकर जीवन में
सौंदर्य मधुर भर जाएँगी।
महकेगी फूलों की सुगंध,
प्यारी-प्यारी नस्लें होंगी,
कालान्तर में इन पेड़ों की
कलदार मधुर फसलें होंगी।
यदि बीज प्यार का बोयेंगे
तो प्यार सभी से पायेंगे,
नफरत के पेड़ उगाएंगे,
हिस्से में कांटे आएंगे।
जो प्रेम भरा हो रिश्तों में
तो इनसे बढ़कर के क्या चीज?
आओ हमसब मिलजुल करके,
बोयें कुछ रिश्तों के बीज।