आज मेरे स्वप्न का संसार दुनियां मांगती है।
मैं लुटाता ही रहा हूँ कोष जो मैने जुटाया,
जेब खाली हो गया तब रेत का इक घर बनाया,
एक ही आधार, वह आधार दुनियां मांगती है,
आज मेरे स्वप्न का संसार दुनियां मांगती है।
लाख मैने कोशिशें की, तब कहीँ मुस्कान पाया,
हाथ दोनों जोड़कर, विनती यही करता मैं आया,
सब रहें इक छत तले, दीवार दुनियां मांगती है,
आज मेरे स्वप्न का संसार दुनियां मांगती है।
आत्मा की शुद्धता की बात पर बस जोर डाला,
आवरण कोई न हो, बस सत्य का मुख पर उजाला,
पर चमकते हुस्न का बाजार दुनियां मांगती है,
आज मेरे स्वप्न का संसार दुनियां मांगती है।
एक टूटी नाव को कबसे अकेले खे रहा हूँ,
इस समंदर में जहाजों से मगर आगे रहा हूँ,
मैं फंसा मझधार में, पतवार दुनियां मांगती है,
आज मेरे स्वप्न का आधार दुनियां मांगती है।
Fantastic….. Hats off bhaiya G
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