शराफत दिल में रखता हूँ – मुक्तक 

तीन मुक्तक

1-
​जो आँखे चार ना होतीं तो उनसे प्यार क्या होता,
अगर जो प्यार ना होता, ये तकरार क्या होता,
अभी तो मैं सुलगता हूँ, कोई देखे अगर उनको,
जो उनके दिल में कोई और बस जाता तो क्या होता?

2-
जो उनसे प्यार ना होता, तो मैं बदनाम क्यों होता?
जो तुम समझा रहे वो बात, चर्चा-आम क्यों होता?
मशवरा मान लेता मैं ज़माने की अगर पहले,
किसी से दिल लगाने का हंसी इलज़ाम क्यों होता?

3-
बड़ी खामोशियों से मैं इबारत दिल में लिखता हूँ,
तुम्हारा प्यार है मेरी इबादत, दिल में रखता हूँ,
बहुत ही खूबसूरत हुस्न है तेरा मगर फिर भी,
दीवाना सादगी का हूँ, शराफत दिल में रखता हूँ।

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