दर्दे-दिल बर्दाश्त की तो हद हुई,
चुप रहूँ कैसे मैं अब तो हद हुई।
तेरी ज़ानिब और कोई देखता,
और मैं हूँ शांत ये तो हद हुई।
जेब में सिक्का न हो, मैं दावते दूँ?
बस करो, इंसानियत की हद हुई।
आदमी को आदमी डंसने लगा,
मुल्क में हैवानियत की हद हुई।
हिचकिचाते हैं दिए जलने में अब,
चल जला दें घर को ही, अब हद हुई।
दौड़ता हूँ कूदने को आग में,
यार मेरे बचपनें की हद हुई।
प्यार की मंजिल अभी तो दूर है,
रास्ते में अड़चनों की हद हुई।
मुंह छिपाएं रौशनी कहने लगी,
‘इस अँधेरी रात की तो हद हुई’।
छोड़ दो तुम चींखना हर बात पर,
शोर इतना है कि अब तो हद हुई।
आ रही है रौशनी इस ओर भी,
देर से आती सुबह भी, हद हुई।