मैं गिला करूँ भी तो क्यूँ करूँ – Why I blame someone

​मित्रों,

आजकल ब्रेक-अप का जमाना है। एक बार मुलाक़ात हुई, फिर बात होती है, फिर कुछ अंकों का आदान-प्रदान और फिर whatsapp पर प्यार शुरू…तभी अचानक कोई भेजा हुआ संदेश दिल को लग जाता है और उसी massage को सुबूत की जगह इस्तेमाल करके बाकयदा ब्रेक-अप कर लिया जाता है और फिर massage में अनुलोम-विलोम शब्दों का प्रयोग बढ़ जाता है।

और जब एक शायर का ब्रेक-अप होता है तो क्या होता है? वो भी एक इंसान है, पर इतना high-tech नहीं है। उसके इश्क में एक रूहानी असर है और वह अपना दर्दे-दिल बयाँ करना चाहता है और वो भी बिना अपने प्यार को रुषवा किए। ऐसी दुविधा की स्थिति में फंसे किसी शायर के गैर-मामूली जज्बातों को अल्फ़ाज़ों में ढालने की एक बड़ी कोशिश मैंने की है और इस कोशिश की कामयाबी का फैसला आपपर है….

वो मिला नहीं तो भी क्या हुआ, मैं गिला करूँ भी तो क्यूँ करूँ?
जो नसीब में ही लिखा नहीँ, तो मैं क्या करूँ, तो मैं क्यूँ मरुँ?

वो चराग़-ए-इश्क जला गए, मेरे आरजुओं के दरमियाँ,
वो करार कर के निकल लिए, ये किसे पता, जाने कहाँ?
वो चले गए तो भी क्या हुआ, इन रास्तों से मैं क्यूँ डरूँ?
वो मिला नहीं तो भी क्या हुआ, मैं गिला करूँ भी तो क्यूँ करूँ?

मेरी आदतें दिलफेंक है, मेरी चाहतों का न पूछिए,
मेरी जिंदगी इक आग है, मेरे रास्तों का न पूछिए,
वो लहू में बहते हैं प्यार से, फिर उदास दिल को मैं क्यूँ करूँ?
वो मिला नहीं तो भी क्या हुआ, मैं गिला करूँ भी तो क्यूँ करूँ?

रस्में वफ़ा का रिवाज़ है, जिसे आज तक मैं निभा रहा,
कोई ले गया दिल लूटकर, पर गीत उनका ही गा रहा,
कोई आदतन मगरूर है, ये कहूँ तो भी मैं क्यूँ कहूँ?
वो मिला नहीं तो भी क्या हुआ, मैं गिला करूँ भी तो क्यूँ करूँ?

मैं ख़याल-ए-ख्वाबों के दरमियाँ ही फंसा रहा इसी चाह में,
कोई जिंदगी में था जँच गया, कोई आ गया था निगाह में,
तेरी आशिक़ी, मेरी रहनुमा, ये बयान सबसे मैं क्यूँ करूँ?
वो मिला नहीं तो भी क्या हुआ, मैं गिला करूँ भी तो क्यूँ करूँ?

मेरी आदतें भी अजीब है, कोई प्यार से पुचकार दे,
मैं बहल ही जाता हूँ बेख़बर, कोई दिल से दिल को दुलार दे,
उन्हें याद हो की न याद हो, ये ख़याल दिल में मैं क्यूँ करूँ?
वो मिला नहीं तो भी क्या हुआ, मैं गिला करूँ भी तो क्यूँ करूँ?

वो जुदा हुए, मेरी जिंदगी, न जुदा हुई, न ख़तम हुई,
उन्हें फिर से पानें की ख्वाहिशें, मेरी चाहतें न दफ़न हुई,
ये जो दिल है, उनका मुरीद है, मैं मना करूँ भी तो क्यूँ करूँ?
वो मिला नहीं तो भी क्या हुआ, मैं गिला करूँ भी तो क्यूँ करूँ?

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3 thoughts on “मैं गिला करूँ भी तो क्यूँ करूँ – Why I blame someone

  1. हर बात में कुछ बात है,एहसासों की बरसात है
    कुछ दर्दे दिल की दास्ताँ जैसे कोई सौगात है
    जो आंसुओं में बहे गए वो अजनबी लम्हे मेरे
    मै बयां करूँ तो क्या करूँ मै गिला करूँ तो क्यों करूँ
    लाजवाब ,शानदार, बेमिसाल बहुत बढ़िया

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