गिरगिट जैसा रंग बदलते, मन को आज बदलना सीखो,
आसमान पर उड़ने वाले, धरती पर भी चलना सीखो।
जब-जब उतरे तुम धरती पर, बस हवा-हवाई बातें की,
जिन्होंने तुमको पंख दिए, उनके ही दिल पर घातें की,
जाने किस दिन हो जाए अस्त, तेरा गौरव, मत छलना सीखो,
आसमान पर उड़ने वाले, धरती पर भी चलना सीखो।
जब-जब आते हो पास मेरे, बस अपनी ही बातें धुनते,
मैं भी कुछ कहना चाहूँ तो, तुम मेरी बातें कब सुनते?
औरों के सुख से दुखी हुए, मत अहंकार में जलना सीखो,
आसमान पर उड़ने वाले, धरती पर भी चलना सीखो।
वक्त थपेड़े कब जड़ दे, इसका तुमको अनुमान नहीं है,
कब टूटेगा पंख तुम्हारा, इसका भी कुछ ज्ञान नहीं है,
यही समय, धरती पर आकर, गिरना और संभलना सीखो,
आसमान पर उड़ने वाले, धरती पर भी चलना सीखो।
मेरा क्या है, मैं धरती का वासिन्दा, धरती का प्राणी,
अगर गिरा चलते-चलते, उठ जाऊंगा, क्या हैरानी?
इससे पहले तुम गिर जाओ, कुछ वक्त मुताबिक ढलना सीखो,
आसमान पर उड़ने वाले, धरती पर भी चलना सीखो।
मानव हो तो मानवता का कुछ ज्ञान जुटा लो जीवन में,
जांचो-परखो, अनुमान लगा लो, कितना सुख इस बंधन में,
अधिकार तुम्हारे जायज पर, कर्तव्यों से मत टलना सीखो,
आसमान पर उड़ने वाले, धरती पर भी चलना सीखो।
Very nice poem,
very beutiful
LikeLiked by 1 person
प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
LikeLike
बहुत सुन्दर, सार्थक और विचरणीय रचना
सत्य का यतार्थ चित्रण। लाजवाब !!!
LikeLiked by 1 person