​बहुत बुन चुके ताने-बाने – Think about rights but duties more

बहुत बुन चुके ताने-बाने
बहुत बुन चुके ताने-बाने

बहुत बुन चुके ताने-बाने।

दानें सीमित, चोंच बहुत हैं,
अधिकारों का बोध बहुत है,
पर कर्तव्यों का पालन भी,
करे कोई तब तो हम मानें,

बहुत बुन चुके ताने-बाने।

पंथ एक, राही बहुतेरे,
उसमें भी कुछ चोर-लुटेरे,
हर कठिनाई पार करें सब
मिल-जुल कर तब इन्हें बखानें,

बहुत बुन चुके ताने-बाने।

व्यथित हृदय की बात न पूछो,
कौन हमारे साथ, न पूछो,
शमा जला दी पर ना पहुंचे,
मेरे दीपक तक परवानें,

बहुत बुन चुके ताने-बाने।

रहा लुटाता जीवन भर मैं,
मगर थका हूँ अब जाकर मैं,
मेरा खाया खूब दबाकर,
मुझे खिलाओ तो हम जानें,

बहुत बुन चुके ताने-बाने।

गीत लिखे पर छंद नहीं है,
मात्रा का प्रतिबंध नहीं है,
मधुर बनें कैसे कविता वह,
कैसे कोई छेड़े तानें,

बहुत बुन चुके ताने-बाने।

कोई हँसता, कोई रोता,
मैं इन सबकी लड़ी पिरोता,
इनसे ही मैं गीत बनाता,
फिर गाता जाने-अनजाने,

बहुत बुन चुके ताने-बाने।

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11 thoughts on “​बहुत बुन चुके ताने-बाने – Think about rights but duties more

      1. पीठ ठोकी मेरी, और क्या चाहिए,
        मंजिलों का मुझे बस पता चाहिए,
        खुद-ब-खुद रास्ते पर चला आऊँगा,
        आप सा बस कोई रहनुमा चाहिए…

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