
बहुत बुन चुके ताने-बाने।
दानें सीमित, चोंच बहुत हैं,
अधिकारों का बोध बहुत है,
पर कर्तव्यों का पालन भी,
करे कोई तब तो हम मानें,
बहुत बुन चुके ताने-बाने।
पंथ एक, राही बहुतेरे,
उसमें भी कुछ चोर-लुटेरे,
हर कठिनाई पार करें सब
मिल-जुल कर तब इन्हें बखानें,
बहुत बुन चुके ताने-बाने।
व्यथित हृदय की बात न पूछो,
कौन हमारे साथ, न पूछो,
शमा जला दी पर ना पहुंचे,
मेरे दीपक तक परवानें,
बहुत बुन चुके ताने-बाने।
रहा लुटाता जीवन भर मैं,
मगर थका हूँ अब जाकर मैं,
मेरा खाया खूब दबाकर,
मुझे खिलाओ तो हम जानें,
बहुत बुन चुके ताने-बाने।
गीत लिखे पर छंद नहीं है,
मात्रा का प्रतिबंध नहीं है,
मधुर बनें कैसे कविता वह,
कैसे कोई छेड़े तानें,
बहुत बुन चुके ताने-बाने।
कोई हँसता, कोई रोता,
मैं इन सबकी लड़ी पिरोता,
इनसे ही मैं गीत बनाता,
फिर गाता जाने-अनजाने,
बहुत बुन चुके ताने-बाने।
umda….
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प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
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🙏🙏
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Wah bhai…bahut khoob
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प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद रोहित जी
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My pleasure bhai 🙂
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पीठ ठोकी मेरी, और क्या चाहिए,
मंजिलों का मुझे बस पता चाहिए,
खुद-ब-खुद रास्ते पर चला आऊँगा,
आप सा बस कोई रहनुमा चाहिए…
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Kya baat h bhai…maza aa gya
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Fabulous
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Fantastic
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thanks Ravi
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