तीन मुक्तक
1-
पीठ ठोकी मेरी, और क्या चाहिए,
मंजिलों का मुझे बस पता चाहिए,
खुद-ब-खुद रास्ते पर चला आऊँगा,
आप सा बस कोई रहनुमा चाहिए…
2-
आपने कह दिया, हमने सुन भी लिया,
मंजिलें है जिधर, रास्ता चुन लिया,
आपका साथ हो, तो क्या हांसिल न हो,
जी बहुत शुक्रिया, जी बहुत शुक्रिया…
3-
आज मैं हूँ यहाँ, कल चला जाऊंगा,
रहगुजर पर तुम्हारे नहीं आऊंगा,
आज की रात तो छेड़ने दो मुझे,
तान फिर मैं सुनाने नहीं आऊंगा।
वाह क्या लिखा है भाईजान
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धन्यवाद
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प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
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Bahut hi umda dost 🙂
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