चार मुक्तक
1-
लोग आते रहे, लोग जाते रहे,
मेरी नादानी पर मुस्कुराते रहे,
मैं सुनाता रहा गीत अपना यूँहीं,
लोग दावत मजे से उड़ाते रहे।
2-
किस कदर हो गए तुम परेशान हो,
कितनी मासूम हो, कितनी नादान हो,
लोग पूछेंगे तो मैं बता दूंगा ये,
मैं तेरी जान हूँ, तुम मेरी जान हो।
3-
कोशिशें की बहुत तब ये रात आई है,
अपने घर गूंजती आज शहनाई है,
आओ मिल-जुल के हम बाँट लें अपने गम,
बाद मुद्दत ख़ुशी की घड़ी आई है।
4-
मैं पिलाता रहा दूध, वो डंस गए,
जाल फेंकी ही ऐसी कि हम फंस गए,
चंद लफ़्ज़ों से दिल चीरकर रख दिया,
मेरी चाहत पे वो फब्तियां कस गए।