डूब रहा था दरिया में, कोई भी तिनका पास नहीं था।
लिए हौसला दिल में अपने, साहिल को मैं देख रहा था,
‘काम बहुत है बाकी अब भी’ हाथ-पांव मैं फेंक रहा था,
तट की ज़ानिब तैर रहा था, लहरों का भी साथ नहीं था,
डूब रहा था दरिया में, कोई भी तिनका पास नहीं था।
तभी अचानक कुछ दूरी पर, कुछ नावें देखीं थी हमने,
‘क्योंकर कोई फिरा नहीं,’ आवाज बहुत तो दी थी हमने,
‘शायद दिलचश्पी ना हो’, उनकी नजरों में खास नहीं था,
डूब रहा था दरिया में, कोई भी तिनका पास नहीं था।
तभी अचानक एक लहर बिल्कुल मेरे समीप थी, गुजरी,
मानों मुझमें जान आ गई, स्मृतियां अतीत की गुजरी,
‘सब कुछ सम्भव है जीवन में’, बस मुझको आभास नहीं था,
डूब रहा था दरिया में, कोई भी तिनका पास नहीं था।
तभी ज्ञान हो आया मुझको, खुद जीना है, खुद मरना है,
खुद अपनी मंजिल पानी है, खुद ही किस्मत से लड़ना है,
मिला मुझे साहिल भी आखिर, लोगों को विश्वास नहीं था,
डूब रहा था दरिया में, कोई भी तिनका पास नहीं था।
आज मुझे दुनियां वाले कवि कहते हैं गौरवशाली,
मैं रहा लुटाता कोष सदा, अब हाथ मेरे खाली-खाली,
अब दीप जलाता गीतों का, गांवों में प्रचुर प्रकाश नहीं था,
डूब रहा था दरिया में, कोई भी तिनका पास नहीं था।