यहाँ महफूज़ बैठे हो – दो मुक्तक

​दो मुक्तक

1-
कोई बर्बाद होता है, यहाँ महफूज़ बैठे हो,
चुराए नोट गिनने में इधर मशरूफ बैठे हो,
लड़ाई रोटियों की है, गरीबी का ये आलम है,
डिनर के बाद हाथों में लिए तुम जूस बैठे हो।

2-
अदाएं शोख है इतनी की दीवाना हुआ ये दिल,
तेरे लब पे दिए जलते हैं, परवाना हुआ ऐ दिल,
सुरीली तुम, तुम्हारी शोखियों में इक सुरीलापन,
कशिश आवाज की ऐसी कि मस्ताना हुआ ये दिल।

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One thought on “यहाँ महफूज़ बैठे हो – दो मुक्तक

  1. निबंध लेखन के पर्याय रूप में सन्दर्भ, रचना और प्रस्ताव का भी उल्लेख किया जाता है। लेकिन साहित्यिक आलोचना में सर्वाधिक प्रचलित शब्द निबंध ही है। इसे अंग्रेजी के कम्पोज़ीशन और एस्से के अर्थ में ग्रहण किया जाता है।

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