दो मुक्तक
1-
कोई बर्बाद होता है, यहाँ महफूज़ बैठे हो,
चुराए नोट गिनने में इधर मशरूफ बैठे हो,
लड़ाई रोटियों की है, गरीबी का ये आलम है,
डिनर के बाद हाथों में लिए तुम जूस बैठे हो।
2-
अदाएं शोख है इतनी की दीवाना हुआ ये दिल,
तेरे लब पे दिए जलते हैं, परवाना हुआ ऐ दिल,
सुरीली तुम, तुम्हारी शोखियों में इक सुरीलापन,
कशिश आवाज की ऐसी कि मस्ताना हुआ ये दिल।
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