दर्दे-दिल कह दिया, आप हंसते रहे – चार मुक्तक

​1-
आदमी, आदमी को ही डंसते रहे,
दलदलों में सियासी, वो धंसते रहे,
मैं दिखाता रहा अपना दिल चीरकर,
दर्दे-दिल कह दिया, आप हंसते रहे।

2-
तेरी शहनाइयां गूंजती कान में,
खुश हुए तुम बहुत, पर परेशान मैं,
घूम आऊँ चलो रात वीरान है,
तब कहीं जान आए मेरी जान में।

3-
कोशिशें की बहुत तब ये रात आई है,
अपने घर गूंजती आज शहनाई है,
आओ मिल-जुल के हम बाँट लें अपने गम,
बाद मुद्दत ख़ुशी की घड़ी आई है।

4-
कोई हँसता रहा, कोई रोता रहा,
ख्वाब कोई सुहाने संजोता रहा,
बेटी घर से चली, घर है सूना पड़ा,
बाप रातों में तकिया भिगोता रहा।

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