मेरे जज़्बात न पूछो – दो मुक्तक

​दो मुक्तक-

1-
अजब सी आग जलती है कि दिल की बात न पूछो,
धुआँ आने लगा बाहर, मेरे हालात न पूछो,
कहीँ ऐसा न हो की तुम झुलस जाओ करीब आकर,
बस अपनी बात कह दो पर मेरे जज़्बात न पूछो।

2-
तुम्हारी आंच से दिल में छुपी ख्वाहिश पिघलती है,
तुम्हारी शोखियों से इश्क की हसरत मचलती है,
मैं मुंह को सी भी लूँ नजरें बयाँ करती हैं किस्से को,
दिया इस प्यार की हर वक्त इन आँखों में जलती है।

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5 thoughts on “मेरे जज़्बात न पूछो – दो मुक्तक

  1. तुम्हारी आंच से दिल में छुपी ख्वाहिश पिघलती है…
    आप तो छुपे हुए खजाने हैं।

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    1. जब रात की काली स्याही से
      गीतों को रंगना पड़ता है,
      आशाएं मरने लगतीं हैं,
      जज़्बात को जीना पड़ता है,
      धरती की सारी रंगीनी
      जब फीकी पड़ने लगती है,
      झूठे-मूठे आश्वासन से
      यह दुनियां मुझको ठगती है,
      इक दिन ऐसा भी आएगा,
      दुनियां मुझको अपनाएगी
      वो सुबह कभी तो आयेगी
      वो सुबह कभी तो आयेगी…

      Nevertheless…
      Thanks for the complement…

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