आपको स्वीकार है जो मेरे अफ़साने गए,
है बहुत, कवि रूप में ‘कौशल’ भी पहचाने गए।
लाख तेरे चाहने वाले हों, हम भी कम नहीं,
फेहरिस्त-ए-शायरों में हम भी दीवाने गए
खंडहर, भुतहा मकानों में परिंदे छुप गए,
जब गया इंसान, परिंदों के ठिकाने गए।
कर रहा अब भी भरोसा यार, यह कुछ कम नहीं,
मिर्च मल दी कल जभी हम घाव दिखलाने गए।
खुद तुम्हारे पाँव कीचड़ में सने हैं दरअसल,
दूसरों को कायदे-कानून समझाने गए??
एक मुट्ठी फायदे खातिर वहां कश्मीर में,
मुल्क में तुम नफरतों की आग भड़कानें गए??