अब राह दिखा दो दुनियां को,
क्या देख रहे अन्तर्यामी,
यह मानवता की नादानी,
यह मानवता की नादानी।
जो आदर की अधिकारी है,
वह फिरती मारी-मारी है,
चिथड़ों में लिपटी बूढी माँ,
बेटे करते हैं मनमानी,
यह मानवता की नादानी।
निजता का बोध सभी को है,
प्रतिकार, विरोध सभी को है,
खुद कीचड़ में धँसते जाते,
पर ना होती कुछ हैरानी,
यह मानवता की नादानी।
हो हृदय लबालब प्रेम भरा,
जो पिय के खातिर जिया-मरा,
मुश्किल से मिलती धरती पर,
मीरा सी कोई दीवानी,
यह मानवता की नादानी।
अब कौन ठानता यह मन में,
‘आदर्श बनाएं जीवन में,
पदचिन्ह हमारे ऐसे हों,
जिनको पहचाने अनुगामी,’
यह मानवता की नादानी।
ओछी चाहत है, प्यार नहीं,
वह भावपूर्ण रसधार नहीं,
मतलब के साथी बहुतेरे,
इच्छाएं हैं बहुआयामी,
यह मानवता की नादानी।
तुम वीर बनों, बदनाम नहीं,
कुछ भी उबाल का नाम नहीं,
ऐसा लगता है नस-नस में,
लहू नहीं बहता है पानी,
यह मानवता की नादानी।
जो इक मसाल सी जलती थी,
इक क्रांति हृदय में पलती थी,
जो रुख मोड़े धाराओं की,
खो गयी जवानी तूफानी,
यह मानवता की नादानी।
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