बाज़ार में अश्कों की कीमत तो देखिए – कलाम-ए-शायर

​है मुफ़लिसी का दौर पर हिम्मत तो देखिए,
इस शायर-ए-फनकार की मोहब्बत तो देखिए।

बिन पंख के ही उड़ने को बेताब किस कदर,
नादान परिंदे की हसरत तो देखिए।

सूखे में किसानों का जीना मोहाल था,
अब बाढ़ है, खुदाई रहमत तो देखिए।

जब से हमारे शहर अदाकार आ गए,
बाज़ार में अश्कों की कीमत तो देखिए।

सदियों से परिंदों के जो आशियाँ रहे,
इन शख्त दरख्तों की नज़ाकत तो देखिए।

हर कायदे-कानून के वे जानकार हैं,
यह कवायद, पैंतरे, हुज्जत तो देखिए।

कहीं गाली, कहीं गंठजोड़ की जद्दो-जहद शुरू,
इस सियासी ऊंट की करवट तो देखिए।

जिसको भी देखिए वही कींचड़ में सना है,
सियासत में शरीफों की किल्लत तो देखिए।

जीने की आरज़ू में मरे जा रहें हैं लोग,
यह ख्वाहिश-ए-दौलत, ये जरूरत तो देखिए।

‘बाप’ छोड़िए, इन्हें ‘दादा’ बना लिया,
इस शहर में गुंडों की इज्जत तो देखिए।

जेल से रिहा नेता का खैरात लूटते,
चिथड़े लपेटे बच्चे की किस्मत तो देखिए।

अल्फ़ाज की तपिश को सीने में दबाकर,
गुम-सुम पड़े पन्ने की शराफत तो देखिए।

पिंजरे में कुलबुलाते दिल के सभी अरमान,
अब कागजों पर इनकी शरारत तो देखिए।

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10 thoughts on “बाज़ार में अश्कों की कीमत तो देखिए – कलाम-ए-शायर

  1. नवोदित कवियों के लिए बहुत उयोगी लेख,
    अत्यंत सराहनीय प्रयास ।

    है प्यार अगर रोग तो हम भी मरीज हैं ,
    माथे पे हाथ रख के हरारत तो देखिए।

    नफीस परवेज़

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