कविता, साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपना विशिष्ट स्थान रखती है और भारतीय साहित्य के लगभग हर आलोचक ने अपने अपने ढंग से इसे परिभाषित किया है। कोई इसे ‘जीवन की अनुभूति'(आचार्य रामचंद्र शुक्ल) तो कोई ‘सत्य की अनुभूति कहता है (श्री जयशंकर प्रसाद)। कवियत्री महादेवी जी के शब्दों में, “कविता कवि विशेष की भावनाओं का चित्रण है।”
और मैं समझता हूँ की कविता कल्पना में सत्य और सत्य की कल्पना में निहित होती है जो प्रभावी ढंग से कवि हृदय से निकलती है और जनसाधारण को अंदर तक झकझोर देती है। यही कारण है कि कवि निर्जीव वस्तुओं में भी जीवन ढूंढकर अपनी भावनाओं में एक प्रभाव उत्पन्न करके जनसाधारण को एक नया सन्देश दे जाता है जो लोगों की नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक रूप में परिवर्तित कर एक नए उत्साह का प्रादुर्भाव करता है।
हमारे देश की काव्य परम्परा बहुत प्राचीन है। हमारे वेद, रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्य और उपनिषद आदि श्लोकों में लिखे गए हैं और श्लोक काव्य की ही विधा है। इनकी महत्ता के विषय में कोई संदेह नहीं , और ये प्राचीनतम ग्रन्थ आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं तो इसके पीछे सूक्ष्म विचार, व्यापक भाव और काव्यात्मक प्रस्तुति है।
जैसा की यह बात सर्वविदित है कि कविता हृदय से निकलती है यही कारण है कि इसका प्रभाव स्थाई एवं तेज होता है। कविता के दो पक्ष होते है भाव पक्ष यानि आंतरिक स्वरुप और कला पक्ष अर्थात बाह्य स्वरुप। भाव पक्ष कवि के कोमल हृदय में सहजता से उत्पन्न होता है और विभिन्न कवित्त कलाओं के माध्यम से कवि इस भाव को एक प्रभावी रूप दे देता है। अर्थात भावना को केंद्र मानकर, विभिन्न कलाओं के माध्यम से कवि शब्दचित्र रुपी वृत्त खींचता है जिसे कविता कहते हैं। यानि कविता हृदयस्थ भावों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की कला है। उचित शब्दचयन, विभिन्न अलंकार और सटीक लयबद्धता इस कला के आधार-स्तंभ हैं जो एक साधारण भाव को भी एक विशिष्टता प्रदान करते हैं जिसे पढ़कर या सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
आजकल छंदमुक्त कविता का काफी प्रचलन है और उनसे से अनेक लोकप्रिय भी हो रहीं है, कवि अपने शशक्त भाव का प्रभावी शब्दों के माध्यम से शब्दचित्र खींचता है लेकिन वही बात अगर सटीक छन्दों में लयबद्ध तरीके से कही जाए तो उसके प्रभाव की व्यापकता बढ़ जाती है, खासकर अगर कविता मंच से सुनानी हो।
और मैं समझता हूँ कविता को छंदबद्ध करना भाव सृजन से आसान है, जब बड़ी लड़ाई आपने जीत ली तो थोड़ा और प्रयास करके इसे छंदबद्ध कर दीजिए। फिर उसके प्रभाव के विस्तार का अनुभव कीजिए।
काव्य सृजन कवि की गरिमा है, और इस सृजन से कवि पूर्णता का अनुभव करता है। लेकिन कभी-कभी उचित भाव पैदा नहीं होते और कवि हृदय कुंठित होकर बेफजूल और अपने स्तर से काफी नीचे की कविताओं को गढ़ना शुरू कर देेता है। ऐसी परिस्थिति में लयबद्धता कभी- कभी रामबाण सिद्ध होती है क्योंकि एक लय बन जाने के बाद भावसृजन की तीव्रता बढ़ जाती है, यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव है जिसे मैं आपके साथ बाँटना चाहता हूँ।
आगे बढ़ने से पहले मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि यह लेख नवोदित कवियों को ध्यान में रखकर उनतक अपना व्यक्तिगत अनुभव पहुचाने के उद्देश्य से लिखा गया है।
कविता का सृजन दो तरह से होता है-
1-
भाव सृजन के बाद सुन्दर शब्द, रस, छंद और अलंकार जैसी काव्यात्मक कलाओं के माध्यम से भाव पक्ष को मजबूत करना।
2-
सुन्दर लय पैदा करके उसपर भावसृजन करते जाना।
इसमें प्रथम प्रकार को हम प्राकृतिक कह सकते हैं, जो किसी परिस्थिति विशेष में कवि हृदय से सृजित होता है, और छंद स्वयं भावों का अनुशरण करने लगते हैं।
काव्यसृजन का दूसरा प्रकार कुछ अलग है और हमारे अन्वेषण का केंद्र भी यही है। यदि आप कवि हैं तो भाव सृजन प्राकृतिक रूप से होना चाहिए और अगर नहीं होता है तो निम्नलिखित तरीके से एक बार प्रयास करके देखिए।
छंदबद्ध कविता लिखने के पाँच चरण-
1-
कुछ सरल और बेहतरीन शब्दों का चुनाव कीजिए जिनका अर्थ और प्रभाव असामान्य हो और अन्त्य उच्चारण एक जैसा हो।
2-
अपने पसंदीदा कवियों का कोई एक छंद जो आपको प्रिय हो, की लंबाई, मात्रा और प्रभाव को मन से सोचिए (कृपया ध्यान दें यह लेख नए कवियों को ध्यान में रखकर लिखा गया है। दो-तीन रचनाओं के बाद अपनी स्वयं की छंदशैली विकसित करने का प्रयास करें।)
3-
अपने इर्द-गिर्द हो रहे क्रियाकलापों, घटनाओं, से प्रेरणा लेकर किसी विशेष भाव का सृजन करें।
4-
उत्पन्न भाव को पूर्वसंकलित शब्दों और छंद में तलाशें या जोड़ने का प्रयास करें। अगर आपने 20 शब्द संकलित किये हैं तो देखें किस शब्द से सृजित भाव का तारतम्य है। अगर कोई उचित शब्द न मिले तो उसी तरह के और शब्दों की तलाश करें।
5-
भाव+तुक+लय का एक समन्वय स्थापित करें और दो तीन पंक्तियां लिखें। दो तीन पंक्तियों के बाद विचार प्रवाह तेज होना स्वाभाविक है, फिर भी अगर विचार न आये तो कोई बात नहीं। किसी अन्य मुद्दे पर ध्यान दीजिए और यही प्रक्रिया दोहराते रहिए।
पर्याप्त पंक्तियां सृजित हो जाने के बाद समान भाव वाली पंक्तियों को अलग-अलग क्रमबद्ध तरीके से संयोजित कर लें और पूरी कविता को आवश्यकतानुसार दो या तीन भागों में बांटकर तीन रचनाओं का सृजन एक साथ कर सकते हैं। अगर हर छंद के भाव में विभिन्नता है तो पूरी कविता को मुक्तकों में बाँट दें। अपनी लिखी रचना को कम से कम तीन बार पढें, और आप पाएंगे कि हर बार कुछ सुधार की आवश्यकता है। अगर कोई पंक्ति सुधरती नहीं दिख रही तो उसे वर्तमान कविता से हटा लें और उसे अपनी अगली रचनाओं में स्थान देने के लिए सुरक्षित कर लें।
पहली बार में यह कुछ अजीब अवश्य लगेगा, लय इधर-उधर होना, सही तुकांत वाले शब्द न मिलना, बात में वजन की कमी आदि आम समस्याएं हैं जो शुरू-शुरू में थोड़ी विचलित अवश्य करती हैं लेकिन ये मेरा आजमाया हुआ नुस्खा है और थोड़े से प्रयास और एकाग्रता से आप खुद को एक कुशल छंदकार बना सकता है।
काव्य सृजन की इस प्रक्रिया को एक उदाहरण से स्पष्ट करने के लिए मैं अपनी पिछली रचना को ही लेता हूँ।
1-
शब्द संकलन-
हसरत, मोहब्बत, कीमत, हुज़्ज़त, किल्लत, करवट, इज्जत, किस्मत, शराफत, शरारत, हरारत, नजाकत, हिमाकत आदि।
2-
छंद-
शायरी की परंपरागत शैली
3-
भावसृजन-
कवि गरीब है, गुमनाम है, पर फिर भी उसे अपनी कला से इतना प्यार है कि फायदे नुकसान से हटकर कविताओं पर समय देता है, इसके लिए क्या चाहिए? उत्तर है ‘हिम्मत’
4-
तो इस प्रकार वाक्य में शब्दों को थोड़ा आगे-पीछे, तोड़-मरोड़कर थोड़े प्रयास से दो तीन पंक्तियां सृजित होतीं हैं-
a-
यह शायरी से इश्क, ये मोहब्बत तो देखिए,
इस शायर-ए-गुमनाम की हिम्मत तो देखिए।
थोड़ा और सुधारकर कुछ सकारात्मक परिणाम निकालने के प्रयास में यही पंक्ति कुछ इस तरह से बैठती है-
b-
है मुफ़लिसी का दौर पर हिम्मत तो देखिए,
इस शायर-ए-फनकार की मोहब्बत तो देखिए।
5-
इसी तरह सोच को आगे बढ़ाते हुए विभिन्न भावनाओं को एकत्रित करके 30 पंक्तियां एक घंटे में सृजित हो गई क्योंकि अपने पास एक रेडीमेड मीटर तैयार था। अंत में इनको भावानुसार क्रमबद्ध कर दिया गया। (पूरी रचना के लिए लिंक http://wp.me/p5vseB-kq पर क्लिक करें).
अंत में मैं बस इतना ही कहना चाहता हूँ की मैंने अपने इस फार्मूले से 30 से अधिक छंदबद्ध कविताएं लिखीं हैं। आप भी प्रयास करें, सफलता मिलने की काफी संभावना है।
मिटी न प्यास,सब व्यर्थ हुईं,कोशिशैं चातक टेरों की।
गूँज रही हैं पर्णकुटी मैं ,सिसकियाँ मीठे बेरों की।।
LikeLike
मेरी कुछ कविताएं कवितापानमें व काव्यमंजरी में
छपी हैं कृपया सुझाव दें।
धन्यवाद सहित।
ओम गोपाल शर्मा।
LikeLiked by 1 person
स्वागत है श्रीमान
LikeLike
मैंने इस तरह का कोई ब्लॉग पहली बार पढ़ा है जिसमें कुछ poetry se related ho, aapne kafi achha समझाया है मै इस तरकीब को अपने लेखनी में उतरता है , आज आपका ये ब्लॉग पढ़ के मालूम चल गया कि मै सही दिशा में हूं।
Dhanybad आपका
LikeLiked by 1 person
स्वागत है श्रीमान
LikeLike
Thanks alot to share your experiences.
LikeLike
श्री मान आप छंदों के मध्य उचित विराम संकेतों को भी स्थान दें, क्योंकि आज की पीढी़ को हिन्दी भाषा का प्रयोग करना या फिर सिर्फ पढ़ लेने का भी ज्ञान नहीं है
LikeLike
नवोदित रचनाकारों के लिए उपयोगी लेख ।
आगे भी जानकारी प्रदान करते रहें।
है प्यार अगर रोग तो हम भी मरीज हैं,
माथे पे हाथ रख के हरारत तो देखिए।
नफ़ीस परवेज़
LikeLiked by 1 person
बहुत बढ़िया,
अपने प्रयास की सार्थकता आपकी रचना में देखकर मुझे हर्ष हुआ.
शुक्रिया
LikeLike
नवोदित रचनाकारों के लिए बहुत उपयोगी लेख।
अत्यंत सराहनीय पहल ।
है प्यार अगर रोग तो हम भी मरीज हैं ,
माथे पे हाथ रख के हरारत तो देखिए।
नफ़ीस परवेज़
LikeLiked by 1 person
बहुत बढ़िया,
अपने प्रयास की सार्थकता आपकी रचना में देखकर मुझे हर्ष हुआ.
शुक्रिया
LikeLike
नवोदित कवियों के लिए बहुत उपयोगी,
अत्यंत सराहनीय प्रयास।
है प्यार अगर रोग तो हम भी मरीज हैं ,
माथे पे हाथ रख के हरारत तो देखिए।
नफ़ीस परवेज़
LikeLike
अच्छी जानकारी युक्त पोस्ट
LikeLiked by 1 person
Dhanyavad
LikeLike