दिलों में झाँकता, जमीर टटोलता कोई,
तब कहीं जाके ‘क्या खूब’, बोलता कोई।
जिसे भी देखिए चेहरे पे फ़िदा हो जाता,
हुस्न की भीतरी परतें भी खोलता कोई।
दिल-ए-नादाँ भी जा बैठा है आज मंडी में,
ये माल मुफ्त का है, पर न मोलता कोई।
ज़हर-ए-जिंदगी का घूँट भी मीठा लगता,
अगर इंसानियत थोड़ी सी घोलता कोई।
वज़न बहुत है अल्फ़ाज़-ए-सच्चाई में,
कभी जज्बात-ए-शायर भी तोलता कोई।
Nice one
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