हर क्षण नयनों के द्वार तुम्हारा चंचल मुखड़ा रहता है,
हो खुली आंख या बंद पलक वो चाँद का टुकड़ा रहता है,
सपने में भी तुम अक्सर ही मेरे सम्मुख आ जाते हो,
आकर मेरे मन भावों में वो शब्द पिरो कर जाते हो।
ये शब्द थिरकने लगते हैं भावों के लय पर अनायास,
फिर काव्यसृजन होता सुंदर, नगमें बन जातीं बिन प्रयास,
फिर यह प्रवाहमय अभिव्यक्ति मनमोहक होती जाती है,
जिसको दुनियां पढ़ती, सुनती, या भावुक होकर गाती है।
सब कहते, ‘इन कविताओं में ये कशिश कहाँ से आती है’,
मैं हँसकर चुप रहता बहुधा यह बात गुप्त रह जाती है,
तुम सृजन प्रेरणा मेरे हो, यह बात मैं सबसे क्यों बोलूँ,
जो राज हृदय में दबा हुआ वह जिसपे-तिसपे क्यों खोलूँ।
अतएव जिरह पर लोगों के मैं अक्सर ऐसा कहता हूँ,
‘मां सरस्वती का साधक हूँ, उनकी ही सेवा करता हूँ,
उस महामयी की महिमा के प्रतिफल हैं सारे गीत मेरे,
वो मधुर चेतना भरतीं हैं, इन गीतों में संगीत मेरे।’
पर हुए मंजुरित, फल आए, तुमसे ही मेरे साखों में,
तेरा चेहरा तस्वीर बना, प्रतिबिम्बित मेरी आँखों में।
By
Kaushal Shukla
कौशल जी पहली बार आपकी रचना को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।बहुत सरल ,सच्चे एवं हृदय को स्पर्श करने वाले शब्दों का चयन आप करते हैं….साधुवाद
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https://wp.me/p5vseB-rK
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अति सुन्दर
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सुन्दर शब्द संकलन
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धन्यवाद जोशीजी
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प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
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Heart touching lines👌👌
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