
क्यूँ कहते हो, मौन रहो,
हम हिन्दुस्तानी बोलेंगे
हम उनमें से नहीं जिन्हें
मर्यादाओं का भान नहीं
हम उन लोगों में नहीं जिन्हें
निजकर्मों का अभिमान नहीं
हम अनुगामी उन पावों के
जो अंगारो पर चलते हैं
निज स्वाभिमान की रक्षाहित
जो तूफानों में पलते हैं
कुल क्या है? क्या है खानदान?
इसकी वो बात नही करते
निजकर्मों पर विश्वास किया
बेमतलब घात नहीं करते
टकराते हैं जो पर्वत से
अपनी औकात भुला करके
लेते हैं दम, इस दुनियां को
अपने दो हाथ दिखा करके
है समय, अमन पर संकट है
यह देश बुलाता है हमको
कहता है, ‘क्यों तुम सोए हो?’
झकझोर जगाता है हमको
‘क्यूँ भूले निज कर्तव्यों को?
क्या तुमको लाज नहीं आती?
क्या आज तुम्हारे कानों तक
मेरी आवाज नहीं जाती?’
अब व्यथित-हृदय उकसाता है
‘तुम चलो समर में कूद पड़ो
घेरो, पकड़ो, मारो इनको
दुश्मन से दो दो हाथ करो’
यह कलम धंसी है पन्नो में
वो तब ही बाहर आएगी
जो शमा जली मेरे भीतर
जब घर-घर तक पहुंचाएगी
यह कलम जगाएगी तुमको
वीरों! क्या तुमको नही होश
हर रोज कहानी सुनते हो
फिर भी आता है नहीं जोश
क्या मौन-विवश रहना, वीरोचित
स्वाभिमान कहलाता है?
मैं कहता हूँ यह सहज मार्ग
बस कायर ही अपनाता है
अब उठो वीर संग्राम करो
पहले खुद से फिर दुश्मन से
कर दो परास्त मन के डर को
फिर अड़ जाओ कुछ तन करके
फिर किसकी हिम्मत है जग में
जो की हमसे टकराएगा
वह आप स्वयं मिट जाएगा
जो हमें मिटाना चाहेगा
हे युवावर्ग इस भारत के
जो भी करना है आज करो
है समय यही, साबित कर दो
इस यात्रा का आगाज़ करो
अच्छा! प्रणाम स्वीकार करो
मित्रों ‘कौशल’ मतवाले का
भगवान सहायक होते है
हिम्मत से बढ़ने वाले का
By
Kaushal Shukla
Aap ke har shabd me sacchai aur desh prem saf saf najar aaraha hai….deshwasion ko pukarti aur jagati sarthak rachna…bahut sundar srujan aadarniy
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shaandaar kaushal ji….
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धन्यवाद
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प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
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kya khoob…. bahut bahut badhiya dost…likhte rahiye
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