हमारे देश की सबसे बड़ी विडंबना कॉर्पोरेट कार्यालयों में देखने को मिलती है जहाँ ज्ञान का मापक यंत्र अंग्रेजी भाषा है। अगर साक्षात्कार में साक्षात माता सरस्वती भी विराजमान हों तो धाराप्रवाह अंग्रेजी बोले बिना चयनित नहीं हो सकतीं…
और कॉर्पोरेट जगत से होते हुए यह संक्रामक सोच शहर की सीमाएं लाँघकर गांवों तक पैर पसार चुका है।
क्या यही है मातृभाषा हिंदी का सम्मान…??
और क्या आप भी इस संक्रमण से पीड़ित बहुसंख्यकों में से हैं…??
स्वयं को सच्चा भारतीय समझते हैं तो यह प्रश्न तो बनता है।
और उत्तर अगर ‘हाँ’ में है तो…
स्वयं निर्णय लीजिये क्या यह अपनी मातृभाषा का अपमान नहीं है…???