यह शिशिर पवन मतवाली है।
सरसो पीली, सब खेत हरे
जब हवा चले झूमे-लहरे,
इस मधुर धूप, में हिल-मिल कर
धरती की छँटा निराली है,
यह शिशिर पवन मतवाली है।
कपड़े हैं उसके जीर्ण-शीर्ण,
ठंडक से उसका मुख विदीर्ण,
जैसे तैसे दिन बीत गया,
अब संध्या ढलने वाली है,
यह शिशिर पवन मतवाली है।
भीषण ठंडक में ठिठुर-ठिठुर,
सोचे यह शरद बड़ा निष्ठुर,
उंगली के पोरों पर गिनता,
कब गर्मी आने वाली है,
यह शिशिर पवन मतवाली है।
बहुत लाजवाब…
वाह!!!
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प्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
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