हो नहीं सकता तेरा उद्धार,
मैं लाचार!
घाव दुनिया ने दिया, इक टीस सीने में दबाए,
और भीषण दामिनी को पुष्प-अधरों पर सजाए,
मोहिनी मुस्कान है श्रृंगार,
मैं लाचार!
अनगिनत ताने सहे पर शिकन चेहरे पर नहीं है,
जाति क्या है, धर्म क्या है, क्या ग़लत है, क्या सही है,
हर किसी को बेचती हो प्यार,
मैं लाचार!
खिल-खिलाकर, मुस्कुराकर, बांध घुँघरू नाच गाकर,
महफिलें रंगीन करती, हृदय की पीड़ा छुपाकर,
एक वेश्या का कहाँ परिवार,
मैं लाचार!
शाम ढलते ही यहाँ पर लोग आते, लोग जाते,
हुश्न को नीलाम करते, रौंदकर फिर मुस्कुराते,
फब्तियों से हो तेरा सत्कार,
मैं लाचार!
हर हृदय को प्यार की संवेदना से युक्त कर दे,
ऐ मेरे मालिक जगत को वासना से मुक्त कर दे,
कर रही कवि-वेदना चीत्कार,
मैं लाचार!