जहन्नुम से ख़बर उड़ने लगी है
वहाँ पर भीड़ अब बढ़ने लगी है
उतरने की कोई सूरत नही है
ख़ुमारी इस कदर चढ़ने लगी है
कहीं शायद खुले ना पोल उसकी,
कहानी इक नई गढ़ने लगी है
बुरा है दौर उसका और किस्मत
तमाचा रोज ही जड़ने लगी है
भिखारी लूटते तेरही का भोजन,
वहाँ पर पूरियाँ कढ़ने लगीं हैं
ग़ज़ल लिखता रहा जिसके लिए मैं,
सुना वह आज-कल पढ़ने लगी है
कड़ी मेहनत से पायी है तरक्की
सभी के आँख में गड़ने लगी है
Most beautifully written.
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It’s too good
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शुक्रिया
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