आज की रात दीवाली है, न सोई होगी
मेरी माँ आज बड़ी देर तक रोई होगी
‘वो भी क्या दिन थे, पटाखे थे, फुलझड़ियां थीं’
मेरा ख़त हाथ मे होगा , कहीं खोई होगी।
आज त्योहार है, क्या-क्या नहीं बना होगा
पर मेरे बिन बड़ी फीकी सी रसोई होगी
जिद पे पोते के लोरियाँ सुना रही होगी
मेरा बचपन कहानियों में पिरोई होगी
‘जाने किस दिन को आ जाए जिगर का टुकड़ा’
वो मिठाई और बतासे संजोई होगी
Nicely penned so thoughtful
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Thanks for the complement.
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बहुत सुंदर और मार्मिक चित्रण कविता के माध्यम से
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https://theperfectplaner.wordpress.com/2019/04/29/stop-nickname/
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बेहद खूबसूरत ।।।
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Ji shukriya
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