मैंने पत्थर में भी फूलों सी नज़ाकत देखी
पिस के सीमेंट बने, ऐसी शराफ़त देखी
थी तेज हवा, उनका आँचल गिरा गई
इस शहर ने उस रोज क़यामत देखी
‘मर्ज कैसा भी हो, दो दिन में चला जायेगा’
तुमनें दीवार पर लिखी वो इबारत देखी?
क्या बेमिसाल जश्न मनाया था गए साल
उस विधायक की बड़ी जीत की दावत देखी?
अब एम ए भी भरा करते हैं चपरासियों के फार्म
हमारेे देश में रोजगार की किल्लत देखी?
कितने शरीफ़ लगते थे अल्फ़ाज़ जिगर में,
अब कागज़ों पर इनकी शरारत देखी?