अपने घर में ही नया स्वर्ग बना रखा है
मैंने मां-बाप को मंदिर में बिठा रखा है
दाग़ कैसा भी हो चेहरे पे, छुप नहीं पाता
इसलिए दिल को ही आईना बना रखा है
जिसको सब ढूढ़ते-फिरते गली-मोहल्लों में
अपनी ग़ज़लों में उसे मैंने छुपा रखा है
मेरी नादानियों पे हँस के उड़ाता खिल्ली
मैंने उस शख़्स को हमराज बना रखा है
बात कोई भी करूँ, बस ग़ज़ल निकलती है
आज शाकी ने भी क्या ज़ाम पिला रखा है
दर्द दिल का मेरे नगमों में पिघलकर बहता
बस इसी फन ने मुझे अब भी जिला रखा है
दाग़ कैसा भी हो चेहरे पर छूपता नहीं ,
मैंने दिल को ही आइना बना रखा है ।
वाह बहुत खूब पंक्तियां ,
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आभार ऋतू जी
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