शब्दकोष खाली खाली है
मूक खड़ा है छंद हमारा।
थे गीत शिराओं में बहते
प्रतिपल घुल-मिल कर रुधिर संग
संक्रमित हो गया है प्रवाह
फैला दुनियादारी का रंग
रिसती थी कविताएं जिनसे
अवरुद्घ हुआ हर रंध्र हमारा
शब्दकोष खाली खाली है
मूक खड़ा है छंद हमारा।
मन उद्वेलित हो हो कर
उद्गार लिए अंदर भीषण,
करता रहता विद्रोह सदा
कुचलें कैसे दुविधा का फन
घनघोर निराशा ने मुझसे
है छीन लिया हर द्वंद हमारा
शब्दकोष खाली खाली है
मूक खड़ा है छंद हमारा।
गिरिराज हिमालय नहीं रहा
गंगा की धार बहे कैसे?
छल-दंभ-द्वेष से घिरा हृदय
भावों का वार सहे कैसे?
ना कोई प्रतिकार बचा है
ना कोई प्रतिबंध हमारा
शब्दकोष खाली खाली है
मूक खड़ा है छंद हमारा।
Nice
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धन्यवाद
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