मेरे बचपन का साथी था – गीत

सदियों तक जो खड़ा रहा, मेरे पुरखों का थाती था,
वह पीपल का पेड़ नहीं, मेरे बचपन का साथी था।

जिसकी छाँव तले अपने पैरों पे चलना सीखा था,
जिसकी गोदी में गिरने के बाद संभलना सीखा था,
मेरे छुटपन के हर क्षण का, हर घटना का साखी था,
वह पीपल का पेड़ नहीं, मेरे बचपन का साथी था।

जिसको छूकर आइस-पाइस हम सब खेला करते थे,
जिसकी साखों पर झूलों की रस्सी डाला करते थे,
जिसका पत्ता बना खिलौना, खेलों का मैं आदी था,
वह पीपल का पेड़ नहीं, मेरे बचपन का साथी था।

आरी लेकर पहुँचे थे, जब मैंने आँखे खोली थी,
जिसने काट गिराया था वह जल्लादों की टोली थी,
आज घोंसले खाली थे उनमें ना कोई पाखी था,
वह पीपल का पेड़ नहीं, मेरे बचपन का साथी था।

कहने को कुछ रहा नहीं कैसे दिन मेरा बीता था,
चार दिनों तक आंसू से यह चेहरा रीता-रीता था,
‘बांसदेव’ से उठा भरोसा, पहले आशावादी था,
वह पीपल का पेड़ नहीं, मेरे बचपन का साथी था।

अब चिड़ियों के कलरव से ताज़ा होती है भोर नहीं,
सुबह-सुबह मिक्सर चलने का नित आता है शोर वही,
यादों में ही जी लेता हूँ, ‘मैं नन्हा उन्मादी था’,
वह पीपल का पेड़ नहीं, मेरे बचपन का साथी था।

Advertisement

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s