बादलों का पट हटा ज्यों चाँद धीरे से पुकारा।
आज मन चंचल हुआ कुछ इस तरह तुमने निहारा।।
आज से पहले नहीं मन इस तरह से डोलता था
और विचलित हो हमारे धैर्य को यूँ तोलता था
देख! विद्रोही हृदय ने कर लिया मुझसे किनारा।
आज मन चंचल हुआ कुछ इस तरह तुमने निहारा।।
झील सी आँखों में गहराई बहुत है खो गया हूँ
और तेरी सादगी का मैं प्रशंसक हो गया हूँ
चांदनी मुखड़े सजी माथे सजा कोई सितारा।
आज मन चंचल हुआ कुछ इस तरह तुमने निहारा।।
कंठ है जैसे सुरीली बांसुरी कोई बजी हो
शब्द ज्यों कविता कोई रसदार छंदो से सजी हो
या तेरी आवाज में मिश्रित कोई संगीत प्यारा।
आज मन चंचल हुआ कुछ इस तरह तुमने निहारा।।
रश्मि-रंजित धवल तन पर रेशमी परिधान तेरा
ये मधुर मुस्कान तेरी फिर सुरीला गान तेरा
लग रहा है दैव ने है स्वर्ग से तुमको उतारा।
आज मन चंचल हुआ कुछ इस तरह तुमने निहारा।।
पर सृजन की साधना में जो अधूरापन बचा है
आज अंतर्द्वंद तुमको देखकर भीतर मचा है
छंद रूपी पुष्प से महका रही मधुवन हमारा।
आज मन चंचल हुआ कुछ इस तरह तुमने निहारा।।
well penned sir👌
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🙏🙏
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