प्रेम-सुधा बरसे।
मधुर-मनोहर मोहन की हिय
दर्शन को तरसे।।
राधा पथ में खोई-खोई
मधुर-मिलन के स्वप्न सँजोई
निकली है घर से।
पीत वसन नव श्यामल तन पर
मोर-मुकुट की शोभा मन पर
बरसे निर्झर से।
अधरों पर मुस्कान सजाकर
मुरली की मधु तान सुनाकर
मुरलीधर हरषे।
धीर बँधाती हैं आशाएं
दया-दृष्टि की अभिलाषाएं
मुखरित अंतर से।
प्रियतम को निज कंठ लगाऊँ
आज हृदय की पीर बताऊँ
नटवर नागर से।
अब विलम्ब क्योंकर है स्वामी
विरह-व्यथा के अंतर्यामी
आ जाओ त्वर से।
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