झूमता मासूम बचपन
और दादी की कहानी।
देख टूटे खंडहर को
आ गयीं यादें पुरानी।।
था हमारा घर कभी अब
खंडहर, फैला अँधेरा
खिड़कियों पर घोंसले थे
और चिड़ियों का बसेरा
चहचहाकर भोर में वो
नींद से हमको जगातीं
और कलरव साथ लेकर
झूमता आता सवेरा
खो गए वो हर्ष के छड़
पर बची उनकी निशानी।
देख टूटे खंडहर को
आ गयीं यादें पुरानी।।
वे बगीचे आम के वो
पेड़ पीपल का पुराना
छेड़ती थी गीत कोयल
देखकर मौसम सुहाना
बादलों की फौज लेकर
घुमड़ती आती हवाएँ
जब कभी बरसात होती
नाव कागज की बनाना
बल्लियों मन था उछलता
‘भर गया गड्ढों में पानी’।
देख टूटे खंडहर को
आ गयीं यादें पुरानी।।
दो घड़ी में रूठना फिर
दो घडी में मान जाना
नीम पर चढ़ना-उतरना
डांट खाकर मुस्कुराना
फौज थी शैतान बच्चों
की सभी करते शरारत
मंदिरों में गांव के छुप
देव का लड्डू चुराना
तोड़कर के बाँट लड्डू
बन गए ‘विख्यात दानी’।
देख टूटे खंडहर को
आ गयीं यादें पुरानी।।
आज सबकुछ है यहाँ पर
हर्ष से खाली हृदय है
और चारों ओर जैसे
शोर का कोई वलय है
बस दिखावे की हँसी है
व्यर्थ का अभिमान सबमें
इस नगर में भीड़ है पर
भीड़ में बिरले सदय हैं
छोड़ कर वह गाँव भारी
पड़ रही कीमत चुकानी।
देख टूटे खंडहर को
आ गयीं यादें पुरानी।।