मैं लोचन हूँ मानवता को नव दिव्य-ज्योति दिखलाता हूँ।
मैं खारा जल बरसाता हूँ।।
जब-जब अंतर अकुलाता है
भावों की धार बहाता है
मैं हृदय परिष्कृत करता हूँ फिर मन को स्वच्छ बनाता हूँ।
मैं खारा जल बरसाता हूँ।।
अंतस का सर्वस सहज भाव
बतलाना मेरा है स्वभाव
मुझसे छुप पाता नहीं झूठ, हृदयस्थ भाव दर्शाता हूँ।
मैं खारा जल बरसाता हूँ।।
जब समय खुशी का आता है
मन झूम-झूम कर गाता है
अवशोषित करके कड़वाहट, खुशियों को और बढ़ाता हूँ।
मैं खारा जल बरसाता हूँ।।
दिन में अन्वेषण करता हूँ
मन को सम्प्रेषण करता हूँ
मैं रातों में थक कर पलकों की चादर में सो जाता हूँ।
मैं खारा जल बरसाता हूँ।।
जब इच्छाएँ मर जातीं हैं
घनघोर निराशा छाती है
प्रेषित करके शुभ-स्वप्नों को, आशा का दीप जलाता हूँ।
मैं खारा जल बरसाता हूँ।।