धरा जिसे निहारती गगन जिसे पुकारता।
विचार के धनी मनुष्य को जहाँ दुलारता।।
प्रसन्न चित्त भाव से जो आँसुओं को पी गया
जो लेखनी की नोक से हृदय का घाव सी गया
जो फूल की तरह सदा सुगंध बांटता रहा
मसाल हाथ में लिए जो धुंध छाँटता रहा
जो लेखनी की धार से समाज को सुधारता।
विचार के धनी मनुष्य को जहाँ दुलारता।।
न पूछ रात-रात भर यूँ जाग करके क्या मिला
किसी को रौशनी मिली किसी को हौसला मिला
जो सींच भाव की जमीन स्वप्न बीज बो गया
ऊगा के प्रेरणा का पेड़ अंतरिक्ष हो गया
जो छोड़ कर अमिट निशान व्योम में सिधारता।
विचार के धनी मनुष्य को जहाँ दुलारता।।
जो निर्निमेष कल्पना में सत्य ढूंढता रहा
जटिल, अकथ्य भावना में कथ्य ढूढ़ता रहा
नहीं कोई अजेय वस्तु विश्व को बता गया
कहाँ छुपी है रौशनी रहस्य को जता गया
ख़ुशी-ख़ुशी चला गया ये सोचता-विचारता।
‘विचार के धनी मनुष्य को जहाँ दुलारता।।’
अच्छी लेखनी
LikeLike
बेहतरीन
LikeLiked by 1 person
कौशल जी आप बहुत अच्छा लिखते है। इंडिया के लेखकों के लिए एक सुनहरा अवसर है। एक प्रतियोगिता चल रही है, जिसमें ढ़ेरों इनाम भी है। क्या आप इसमें भाग लेना चाहेंगे? अगर आप उत्सुक हो तो आप मुझे बताए तो मैं आपको सारी details भेजूंगी।
LikeLiked by 1 person
सूचना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कृपया प्रतियोगिता संबंधी निर्देश मुझे मेल करें- kaushal.shukla46@gmail.com
LikeLiked by 1 person
🙏🙏
LikeLike
जी मैंने आपको मेल कर दिया है।🙏
LikeLiked by 1 person
🙏🙏
LikeLike
बहुत सुन्दर, आप बहुत अच्छा लिखते हो👌👌
LikeLiked by 1 person
बहुत बहुत धन्यवाद
LikeLike