निज कष्टों को पीकर के मैं अंतर की प्यास बुझाता हूँ।
कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
जब-जब अंतर अकुलाता है
भावों की धार बहाता है
मैं निज छंदों से सींच-सींच स्वप्नों की फसल उगाता हूँ।
कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
अन्याय जहाँ पर होता है
जब दुखियों का मन रोता है
मैं क्रांतिदूत, न्यायार्थ सदा पहली आवाज उठाता हूँ।
कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
जब इच्छाएँ मर जातीं हैं
घनघोर निराशा छाती है
मैं प्राण फूँककर सपनों में आशा का दीप जलाता हूँ।
कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
माना मेरा अंतर कोमल
पर मुझमें सच का अतुलित बल
नफरत की भारी दीवारें शब्दों से तोड़ गिराता हूँ।
कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
उद्गार हृदय में खिलता है
उपहार सभी को मिलता है
जब मन की वीणा की धुन पर मैं कोई गीत सुनाता हूँ।
कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
जब नींव धैर्य की हिलती है
तब नवल प्रेरणा मिलती है
उर-भावों को आधार बना मैं शब्द पिरोता जाता हूँ।
कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
है हृदय समाहित सकल सृष्टि
प्रभु ने सौपा है दिव्य-दृष्टि
मैं व्योम-भ्रमण करके पल में ही लौट धरा पर आता हूँ।
कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
भंगुर न करो एकांतवास
निर्जन में मेरा है प्रवास
मैं कवि हूँ, निज कविताओं से ही अपना जी बहलाता हूँ।
कविताएँ लिखता जाता हूँ।।
बेहतरीन अभिव्यक्ति👌👌
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