देख गिरी दीवार, धमाका मेरा है
इस प्रदेश का सीएम, काका मेरा है
जुबां हिलाने से पहले यह तय कर ले
मेरी है सरकार, इलाका मेरा है
प्यार नहीं फिर भी यह दावा काहे का ?
लुटने को तैयार, छलावा काहे का ?
मुझको पानी-पानी करके खुश हो ले
दिल मे रखते हो यह लावा काहे का ?
आज जुदा हूँ तो पछतावा काहे का ?
देते हो हर रोज बुलावा काहे का ?
घर में भूजी भांग नहीं तेरे ‘कौशल’
भोज जायकेदार, दिखावा काहे का ?
बस यूँही रास्ता नापते-नापते
आ गया मैं इधर ही, जहाँ आप थे
‘अपनी औकात की मत नुमाईश करो’
मेरे दिल ने कहा हाँफते-हाँफते