प्रसन्न चित्त भावना, विषाद को निगल गयी।
नयी नयी उमंग देख, आत्मा उछल गई।।
निरख सुबह कि लालिमा, निशा प्रछन्न हो गयी
गगन की ओर देखकर, धरा प्रसन्न हो गयी
प्रभात में तरंग का, प्रवाह तेज हो गया
उषा ने आँख खोल दी, भ्रमर कली में खो गया
चमन में फूल खिल गया, बहार फिर मचल गयी।
नयी नयी उमंग देख, आत्मा उछल गई।।
किरण चली दुलारने, नए नए विहान को
खगों की झुंड उड़ चली, विशाल आसमान को
पुकारने लगा प्रभात, बाग दे रहा समय
उठो तुम्हे है जागना, कि सूर्य हो गया उदय
सुगंध संग ले पवन, कली को छू निकल गयी।
नयी नयी उमंग देख, आत्मा उछल गई।।