आज मुझे उर खोल दिखाना।
मैं कौवा, मुझको भी गाना।।
काला रंग है, कर्कश वाणी
मैं भी हूँ धरती का प्राणी
एक बार मेरी भी सुन लो
ऐसा भी क्या बैर पुराना।
जब भी गीत सुनाना चाहूँ
मन की बात बताना चाहूँ
बुलबुल टोक मुझे देती है
गाकर कोई मधुर तराना।
घर में तोंता पाल रहे हो
मीठे फल तुम डाल रहे हो
बचा-खुचा मैं भी खा लूँ तो
इसमें क्या अपराध बताना।
कोयल की अनुशंसा करते
उसकी मधुर प्रशंसा करते
मुझपर पत्थर फेंक रहे हो
गाली या फिर दे दे ताना।
थोड़ा तो अपनत्व दिखाओ
क्या है मेरा दोष बताओ
ईश्वर की करनी का मुझको
भरना पड़ता है हर्जाना।
मैं कौवा, मुझको भी गाना।।